(यह लेख द वायर हिंदी में छपा है) बीते 11 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के बेड़े में भगवा रंग की बसों को शामिल किया. (फोटो साभार: फेसबुक/योगी आदित्यनाथ) शहर और रंग में जुड़ाव तो होता है. बात अगर पहचान की है तो शायद होना भी चाहिए. एक विशिष्ट लुक आता है जब किसी भी शहर की कुछ इमारतें या वहां की सार्वजनिक सुविधा के साधन एक ही रंग में ढंकी होती हैं. लंदन की बसें लाल हैं, तो बर्लिन की मेट्रो पीली. एक रंग किसी शहर की एक अलग पहचान भी बनाती हैं और उसके साथ-साथ इतिहास के कुछ सफ़हों को भी दिखाती हैं. इसके होने के कारण कभी ऐतिहासिक होते हैं और कभी पारिस्थितिक. लंदन की सड़कों पर रुकती-दौड़ती बसें साथ में कुछ इतिहास भी लिए घूमती हैं. पिछले सौ साल से अधिक समय से वहां की बसें लाल हैं. उनके मॉडल बदलते चले गए, दरवाज़े खुलने और बंद होने की तकनीक बदलती गई, उस पर सवार लोग पैसेंजर से कस्टमर बन गए और काला कोट पहनकर खड़े टिकट कंडक्टर की जगह पीले रंग के कार्ड रीडर लग गए. लेकिन बसों का रंग वही रहा… लाल, जिसे लंदन ट्रांसपोर्ट ने 1933 में एक निजी...
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