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… कुछ तो लोग (नहीं) कहेंगे?

न्यूज़ और हेड्लाइंज़ निश्चय ही सुर्ख़ियाँ बनाती हैं। लेकिन ये रोल सिर्फ़ मीडिया तक सीमित नहीं है, ऐसा जान पड़ता है। हमलोग जो न्यूज़ पढ़ते हैं, उस पर बोलते हैं, चाहे टीवी के शोरगुल वाले शोज़ में या महज़ अपने ड्रॉइंग रूम के सोफ़े पर बैठ कर, वो भी न्यूज़ को सुर्खी बनाने में उतना ही अहम भूमिका अदा करते हैं। हाल के दिनों में ये बात आजकल के सबसे ज़्यादा चर्चित न्यूज़ ऐंकर रवीश कुमार ने बेहतरीन ढंग से रक्ख़ा है। उनके समवाद की कुछ बातें आलंकारिक हैं लेकिन बिल्कूल प्रासंगिक।  इसका हालाँकि एक विपरीत लेकिन पूरक पहलू भी है। और वो है हमारी चुप्पी। किसी समाचार पर हम ज़्यादा बोलते हैं और किसी पर कम। और ये स्वाभाविक भी है और इसके बहोत से कारण हो सकते हैं। किसी विषय पर पकड़ ज़्यादा होती है, किसी में इंट्रेस्ट कम।आख़िर एक संतुलित लेख लिखने या कोई सांगितिक बात कहने के लिए, जो दूसरों को सोचने पर मजबूर करे, ये ज़रूरी है कि सतह से नीचे जाकर स्थिति को समझें। असल में अगर एक ही व्यक्ति सारे विषय पर पारंगत तरीक़े से बोलने लगे या कोशिश करे तब थोड़ी शंका ज़रूर होनी चाहिए। इसलिए ये बात ख़ुद में कोई खंडन या आर