जलता मकाँ कुछ तो नहीं है जान की क़ीमत, हैरां सब हैं, क्या है हुक़ूमत, आस की डोर में उलझी हैं साँसें, संग-ए-सियासत आँख चुराए, ये उठता धुवाँ, धुँधला समाँ, जलता मकाँ, झूठ की दुनिया, संग बसा कर, तुझको जीताया, ख़ुद को हरा कर, ...
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