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Showing posts from August 11, 2019

हंगामा क्यूँ है बरपा ...

पुलवामा attack के तुरंत बाद लिखा हुवा, चुनाव प्रचार के दौरान देखी-सुनी बातों को ध्यान में रखकर: हंगामा क्यूँ है बरपा, थोड़ी देर में जो खोली है ज़ुबान. कुछ लोग बेशक हुवे हैं घायल, भक्ति है ये मगर, ना कहें इसे उन्माद. वक़्त नहीं था पहले, लोग समझते ही नहीं, एक ज़रूरी फोटोशूट थी, फिर एक बड़ी झप्पी, अफ़सोस, सर्वदलीय बैठक में भी नहीं, हो पाया था शरीक. क्या करता वैसे भी, आज़ाद और पवार के साथ, मैं तो लोगों के साथ ही ‘डायरेक्ट’ करता हूँ ‘मन की बात’ इसीलिए तो आज तक नहीं दिया, एक भी सच्चा साक्षात्कार. अब ‘ठोस’ क़दम उठाए गए हैं, ‘मौन’ नहीं है पहले वाले कि तरह, वैसे, लाहोर की शादी से ऊरी तक, क्या-क्या उठाए हो, याद दिलाओ. सबने कहा राष्ट्र सर्वोपरि, नहीं होगी शहीद पर राजनीति, लेकिन चुनाव भी तो सर पर है, रैल्लियाँ करनी हैं, उसमें रोना, दहाड़ना और ललकारना भी तो है. चलो, सरहद की गरमी को सरहद के अंदर ही झोंक दें, हर चौराहे और गली को नफ़रत की सीमा बना दें, जो धुवाँ, ग़ुबार और शोर फिर भड़केगा, ज़ुबान की ज़रूरत क्या, हंगामा ख़ुद ही बरपेगा.

लोमड़ी-गीदड़ की शादी, कस्तूरी मृग की सचाई, और ‘सत्तर साल’ का भूत

--> लोमड़ी-गीदड़ की शादी, कस्तूरी मृग की सचाई, और ‘सत्तर साल’ का भूत इस लेख का छोटा version द वायर हिंदी में छपा है. सत्तर साल का कांग्रेस शाशन और उसमें कुछ भी अच्छा ना होना एक ऐसा सच बन गया है जैसे हल्की धूप में इंद्रधनुष निकलने पर गीदड़ और लोमड़ी की शादी के होने का सच. और लोग उस कस्तूरी मृग की तरह इस दावे के पीछे इंद्रधनुष के अंत की ओर भाग रहे हैं जो ख़ुद अपने ही नाभि से आती हुवी सुगंध के स्रोत को नहीं जान पाता. आप अपने खुद के कस्तूरी-विवेक को भूल कर बैठ गए हैं. आपकी सच्चाई आपके अन्दर ही है, लेकिन दूसरे के झूठ को सच मान लेने की तृष्णा आपको घर कर गयी है. उदाहरण स्वरूप, भाजपा हमेशा से ये कहती आयी है कि अगर जम्मू-कश्मीर में उनका शाशन होता तोह वो ‘कश्मीर का मुद्दा’ कबका सुलझा देते. मुद्दा है भी क्या, ये बात फिर कभी बाद में करेंगे. साथ में, ये भी दावा रहता है कि अगर केंद्र में वो रहते तो सब कुछ थोक-पीट कर अब तक शांत कर दिए होते. ठीक है, थोड़ा निरक्षण करिये इस दावे का. सत्तर साल के भूत ने आपके जहन से ये मिटा दिया है कि कुल मिलाकर दस साल से ज़्यादा अब आपकी भी ल...