जलता मकाँ
हैरां सब हैं, क्या है हुक़ूमत,
आस की डोर में उलझी हैं साँसें,
संग-ए-सियासत आँख चुराए,
ये उठता धुवाँ, धुँधला समाँ, जलता मकाँ,
झूठ की दुनिया, संग बसा कर,
तुझको जीताया, ख़ुद को हरा कर,
बिख़रे उम्मीदों की लाश सजा कर.
ये उठता धुवाँ, धुँधला समाँ, जलता मकाँ,
झूठ की दुनिया, संग बसा कर,
तुझको जीताया, ख़ुद को हरा कर,
बिख़रे उम्मीदों की लाश सजा कर.
ये उठता धुवाँ, धुँधला समाँ, जलता मकाँ.
A short expression written while reading, digesting, and not comprehending the scale of havoc India is facing currently. Also, composed it in a simple manner.
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