पुलवामा attack के तुरंत बाद लिखा हुवा, चुनाव प्रचार के दौरान देखी-सुनी बातों को ध्यान में रखकर:
हंगामा क्यूँ है बरपा,
थोड़ी देर में जो खोली है ज़ुबान.
कुछ लोग बेशक हुवे हैं घायल,
भक्ति है ये मगर, ना कहें इसे उन्माद.
वक़्त नहीं था पहले, लोग समझते ही नहीं,
एक ज़रूरी फोटोशूट थी, फिर एक बड़ी झप्पी,
अफ़सोस, सर्वदलीय बैठक में भी नहीं,
हो पाया था शरीक.
क्या करता वैसे भी,
आज़ाद और पवार के साथ,
मैं तो लोगों के साथ ही ‘डायरेक्ट’ करता हूँ ‘मन की बात’
इसीलिए तो आज तक नहीं दिया,
एक भी सच्चा साक्षात्कार.
अब ‘ठोस’ क़दम उठाए गए हैं,
‘मौन’ नहीं है पहले वाले कि तरह,
वैसे, लाहोर की शादी से ऊरी तक,
क्या-क्या उठाए हो, याद दिलाओ.
सबने कहा राष्ट्र सर्वोपरि,
नहीं होगी शहीद पर राजनीति,
लेकिन चुनाव भी तो सर पर है,
रैल्लियाँ करनी हैं, उसमें रोना, दहाड़ना और ललकारना भी तो है.
चलो, सरहद की गरमी को सरहद के अंदर ही झोंक दें,
हर चौराहे और गली को नफ़रत की सीमा बना दें,
जो धुवाँ, ग़ुबार और शोर फिर भड़केगा,
ज़ुबान की ज़रूरत क्या,
हंगामा ख़ुद ही बरपेगा.
हंगामा क्यूँ है बरपा,
थोड़ी देर में जो खोली है ज़ुबान.
कुछ लोग बेशक हुवे हैं घायल,
भक्ति है ये मगर, ना कहें इसे उन्माद.
वक़्त नहीं था पहले, लोग समझते ही नहीं,
एक ज़रूरी फोटोशूट थी, फिर एक बड़ी झप्पी,
अफ़सोस, सर्वदलीय बैठक में भी नहीं,
हो पाया था शरीक.
क्या करता वैसे भी,
आज़ाद और पवार के साथ,
मैं तो लोगों के साथ ही ‘डायरेक्ट’ करता हूँ ‘मन की बात’
इसीलिए तो आज तक नहीं दिया,
एक भी सच्चा साक्षात्कार.
अब ‘ठोस’ क़दम उठाए गए हैं,
‘मौन’ नहीं है पहले वाले कि तरह,
वैसे, लाहोर की शादी से ऊरी तक,
क्या-क्या उठाए हो, याद दिलाओ.
सबने कहा राष्ट्र सर्वोपरि,
नहीं होगी शहीद पर राजनीति,
लेकिन चुनाव भी तो सर पर है,
रैल्लियाँ करनी हैं, उसमें रोना, दहाड़ना और ललकारना भी तो है.
चलो, सरहद की गरमी को सरहद के अंदर ही झोंक दें,
हर चौराहे और गली को नफ़रत की सीमा बना दें,
जो धुवाँ, ग़ुबार और शोर फिर भड़केगा,
ज़ुबान की ज़रूरत क्या,
हंगामा ख़ुद ही बरपेगा.
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